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ये दुनिया की सच्चाई है / पुरुषोत्तम प्रतीक
Kavita Kosh से
ये दुनिया की सच्चाई है
गंगाधर ही विषपाई है
उस पत्थर की सूरत बदली
जिस पर गुल की परछाईं है
साए ग़ायब हैं पेड़ों के
ये मौसम की चतुराई है
मैं घर ढूँढ़ रहा हूँ, घर में
तनहाई ही तनहाई है
देखो-परखो यार ग़ज़ल को
आँसू है या अँगड़ाई है