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ये दुनिया दर्द की मारी बहुत है / अमन चाँदपुरी
Kavita Kosh से
ये दुनिया दर्द की मारी बहुत है
यहाँ रहने में दुश्वारी बहुत है
बिछड़ते जा रहे हैं दोस्त सारे
सफ़र अब ज़ीस्त का भारी बहुत है
भला नादां थे कब मुफलिस के बच्चे
सदा से इनमें हुशियारी बहुत है।
तेरी डी पी को अक्सर चूमता हूँ
मेरी जाँ मुझको तू प्यारी बहुत है
उठा पाये न इसको 'मीर' तक भी
ये पत्थर इश्क़ का भारी बहुत है
मुखालिफ ही चली मेरे हमेशा
हवा के साथ दुश्वारी बहुत है
मिटा देता है हर नक़्शे-क़दम वो
'अमन' रहबर में मक्कारी बहुत है