ये दुनिया रंग-बिरंगी / शिरीष कुमार मौर्य
कुमार विकल को याद करते
सभी कुछ रंगीन था
जब तुम गए
और इन रंगों का हिसाब रखते
पृथ्वी के चारों ओर
बहुत तेज़ी से घूम रहे थे
इंसानी इदारे
तुम्हारी मौत उतनी रंगीन नहीं थी
और उस दिन अख़बारों में बहुत कम जगह बची थी
वे भी अब रंगीन हो चले थे
पैदा हो चुका था इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
हालांँॅकि ख़बरों के लिए उसने
गली-गली घूमना शुरू नहीं किया था
सबसे तेज़ होने में अभी कुछ देर थी
पीने की चीज़ों में
तुमने शायद शरबतों के नाम सुने हों
वे सब भी रंगीन थे
अब तो खैर दिखते ही नहीं
ठंडी बोतलों के घटाटोप में
मेरे सपने तो होने ही थे
रंगीन
चौबीस-पचीस की उम्र में
मैंने पढ़ीं तुम्हारी कविताएँ
और यह भी
कि कवि से ज्यादा
तुम्हारा
शराबी होना मशहूर था
मैंने देखा
मेरी उम्र वाले लड़कों की तरह
तुम भी दुनिया की ख़ाली जगहों में
अपने रंग भर रहे थे
और हमारे रंग दुनिया के रंगों में
इज़ाफ़ा कर रहे थे
अपने सबसे चमकीले दिनों की
धूप में
मैंने तुम्हें ढूँढा
जिसके लिए मेरे पास था
तुम्हारी कविताओं का
एक आधा-अधूरा इलाक़ा
और धूप तो हम दोनों ही पर
बराबर पड़ती थी
वो इलाके-इलाक़े में भेद नहीं
करती थी
मेरे भी बन चले थे बहुत सारे साथी
उन दिनों तुम्हारी तरह मैं भी
मुक्ति की वह अकेली राह अपना चुका था
ये अलग बात है
कि इस राह पर तुम मुझसे बहुत आगे खड़े थे
बहुत कठिन हो चली थी दुनिया
तुम्हारे लिए
और मैं तो अभी ऑंखें ही खोल रहा था
मैंने तुम्हें
वक्त और दुनिया के साथ
खुद से भी
लड़ते देखा था
कविताओं में ही सही
लेकिन बहुत कुछ
अटपटा करते देखा था
ओ मेरे पुरखे बुरा मत मानना
पर मुझे लगता है
कि बहुत रंग-बिरंगी थी ये दुनिया
हमारे भी वास्ते
इसे हमने खुद ही चुना था
और ये हक़ीक़त तुम भी जानते थे
जी रहे थे
इन्हीं रंगों के बीच
इन्हीं की बातें करते थे
और इन्हीं से भाग जाना चाहते थे
ओ मेरे पुरखे!
आख़िर क्या हो गया था ऐसा
कि अपनी आख़िरी नींद से पहले
तुम दुनिया को
सिर्फ अपनी उदासियों के बारे में
बताना चाहते थे
और भी बहुत कुछ होता है
ज़िन्दगी में
उदासियों के अलावा
उदासियों से बेहतर
बताने को
लेकिन अब तुम कुछ भी नहीं
बता पाओगे
इस सबके बारे में अब तो बतायेंगीं
सिर्फ तुम्हारी कविताएँ
जिन्हें अपनी घोर असमर्थता में भी
इतना सामर्थ्य दे गए हो तुम
कि जब भी
रंगों के बारे में सोचें हम
और उन्हें कहीं भरना चाहें
तो हर जगह झिलमिलाते दिखें
तुम्हारे भी रंग
और हमें तुम्हारी याद आए। -2004-