भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये पयाम दे गई है मुझे / इक़बाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ये पयाम दे गई है मुझे बादे- सुबहशाही

कि ख़ुदी के आरिफ़ों का है मक़ाम पादशाही


तेरी ज़िंदगी इसी से, तेरी आबरू इसी से

जो रही ख़ुदी तो शाही, न रही तो रूसियाही


न दिया निशाने-मंज़िल, मुझे ऎ हकीम तूने

मुझे क्या गिलस हो तुझ्से, तू न रहनशीं न राही


शब्दार्थ :

बादे- सुबहशाही= सुबह की हवा; आरिफ़= परिचित; रूसियाही=मुँह पर कालिख; हकीम=दार्शनिक; रहनशीं= सड़क के किनारे डेरा डालने वाले