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ये पेड़ ही थे / दीपक जायसवाल
Kavita Kosh से
किसी भगीरथ ने नहीं
ये पेड़ ही थे
जिन्होंने एक पैर पर बरसों बरस तपस्या की
इस धरती के लिए
हमारे लिए
पानी के लिए
जहाँ वे नहीं हैं धरती आज भी बंजर है।
जब हमारी अनंत भूख
एक दिन आख़िरी पेड़ भी निगल जाएगी
उस दिन धरती हो जाएगी बाँझ
बादल उस दिन गर्भ गिरा देंगे
रेत का कफ़न ओढ़े धरती
उस दिन अंतिम बार धड़केगी।
आसमानी तारे करेंगे मौन
उनकी चमक पड़ जाएगी मद्धिम
सौर मंडल के ग्रह थोड़ा और झुक जाएँगे
ब्रह्माण्ड का सीना थोड़ा और सिकुड़ जाएगा
चाँद के साथ हमारे पूर्वजों की आत्माएँ बैठकर
बहायेंगीं नौ-नौ आंसू।