ये बच्चे / मनीषा जैन
उन्हें नहीं मालूम
क्या होता है
बचपन का प्यार?
न ही माँ की लोरी
वे नहीं जानते
कि फूल कैसे खिलते हैं
वे फूलों के रंग के बारे में नहीं सोचते
वे तितली के विशय में नहीं सोचते
न शहद के बारे में
वे दिनभर कूड़े में कुछ ढूं़ढ़ते रहते हैं
और रात में कहीं भी सो जाते हैं
ये हैं कूड़े के ढ़ेर पर
कुछ बीनते बच्चे
उन्हें नहीं मालूम
कब उगा लाल सूरज
कब उतरा नदी में नारंगी सूरज
उन्हें नहीं मालूम
भोर में चिड़िया का मधुर गान
न ही स्कूल की तख्ती
उन्हें पता है बस
दो रोटी के लिए दो पैसे कमाना
नहीं तो रात में पड़ेगा भूखे सोना
वे बचपन में ही हो रहे हैं बूढ़े
सचमुच उन्हें नहीं पता
रात में टिमटिमाते तारे
जो हैं सब उन्हीं के वास्ते
उन्हें नहीं पता चंदा है हमारा मामा
नहीं है पहचान रिश्तों की
वे बस जानते हैं पानी और रोटी
जिस दिन हाथ आ जाए रोटी
उस दिन मन जाए दिवाली
नहीं तो है फाकों की होली
महरूम हैं अनगिनत चीजों से
ये कूड़े पर खिलते पुश्प हैं
मुंह पर है हंसी इनके
आँखों में है भरे सपने
किसी के तो होंगे ये अपने
ये कूड़े पर कुछ बीनते बच्चे।