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ये बादल अँधेरे बढ़ाएँगे लेकिन / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
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ये बादल अँधेरे बढ़ाएँगे लेकिन
वो सूरज कहाँ तक छुपाएँगे लेकिन
बराबर है कहना न कहना सनम से
किसे हाल अपना सुनाएँगे लेकिन
हो पत्थर जिगर लाख फ़ौलाद दिल हो,
इन आँखों में आँसू तो आएँगे लेकिन
चलें आँधियाँ या चमकती हो बिजली
नशेमन हम अपना बनाएँगे लेकिन
चलो लाख ख़ुद को बचा कर ‘मधुर’तुम
कहीं तो क़दम लड़खड़ाएँगे लेकिन