ये भवसागर इस बार तरूँ / सुरेखा कादियान ‘सृजना’
ना ख़्वाब बूनूँ ना देह धरूँ
ना जन्म चूनूँ ना मौत वरूँ
हे परमेश्वर यही चाह मुझे
ये भवसागर इस बार तरूँ
मैं जन्म-मरण में हूँ खोई
तू जगा मुझे, मैं हूँ सोई
माया की परतों में उलझी
बेहोशी में कितना रोई
नश्वर देह पर मैं इतराती
भूलें कितनी करती जाती
सत्य-असत्य के अंतर को
किंचित भी मैं सोच न पाती
नहीं चाह मुझे संसार मिले
नहीं चाह कि प्रेम-कँवल खिले
इतना तो बतला दे गिरिधर
ये माया-पर्वत कैसे हिले
ना अपना कोई ना हो बेगाना
ना याद हो कुछ न हो भुलाना
मेरे गीतों की हर धुन में
बस अनहद का ही हो तराना
ना नरक बचे ना स्वर्ग बचे
ना दुःख दुःखे ना सुख जचे
सब कुछ सम हो जाये ऐसे
ना रुदन बचे ना नाच रुचे
प्रलय और तांडव हो तेरा
न 'मैं' रहूँ न रहे कुछ 'मेरा'
हे सर्वेश्वर बस तू रह जाये
झाँके फिर इक नया सवेरा