ये भीगी शाम है इसको न टालिये साहिब / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
ये भीगी शाम है इस को न टालिये साहिब
जो जेब में है रक़म तो निकालिये साहिब
जो चखना चाहें कभी आप ज़ाइक़ा विष का
तो आस्तीं में कोई सांप पालिये साहिब
कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाये
बहुत न ख़ुद को हवा में उछालिये साहिब
जबीने-वक्त़३ पे उभरीं हज़ारहा शिकनें
कभी जो भूले से हम मुस्करा लिये साहिब
मुरव्वतों की नई बस्तियां बसानी हैं
कुदूरतों को दिलों से निकालिये साहिब
गुले-मुराद से भर दो हमारे दामन को
हमें न वादए-फ़र्दा पे टालिये साहिब
जो रौशनी के अमीं हो तो इस अंधेरे से
किरण उमीद की कोई निकालिये साहिब
वतन की बात करें, गम़-ज़दों का ज़िक्र करें
मुहब्बतों के बहुत गीत गा लिये साहिब
तलाशे-गौहरे-नायाब है तो 'रहबर` जी
समंदरों की तहों को खंगालिये साहिब