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ये मन / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
देखो
तुम्हारे हाथों में ठहरी ओस की बूँदें
जैसे रात भर
हाथों को खुले आसमान में फैला के रखा हो
आचमन कर इन बूँदों का
अपनी आँखों में झाँक कर देखो
सब कुछ तो तुम्हारे अंदर ही है
व्योम की गहराई
स्थायित्व के लिए
आत्मा का सूरज
तैयार दूर करने को तम
सर्वव्याप्त है तुममें ईश्वर
प्रहरी बन
फिर क्या ढूँढता, कहाँ उड़ता है ये मन?
बहरी (पंछी) बन?