भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये मन / मनीष मूंदड़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखो
तुम्हारे हाथों में ठहरी ओस की बूँदें
जैसे रात भर
हाथों को खुले आसमान में फैला के रखा हो
आचमन कर इन बूँदों का
अपनी आँखों में झाँक कर देखो
सब कुछ तो तुम्हारे अंदर ही है
व्योम की गहराई
स्थायित्व के लिए
आत्मा का सूरज
तैयार दूर करने को तम
सर्वव्याप्त है तुममें ईश्वर
प्रहरी बन
फिर क्या ढूँढता, कहाँ उड़ता है ये मन?
बहरी (पंछी) बन?