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ये मौजे ग़म सुकूँ-आसा भी है, अगर सोचो / ज़फ़र गोरखपुरी
Kavita Kosh से
ये मौजे ग़म सुकूँ<ref>शान्ति देने वाला</ref> -आसा भी है, अगर सोचो।
ये दर्द दिल का मसीहा भी है, अगर सोचो।
वो एक क़ौसे-क़ज़ह<ref>इन्द्रधनुष</ref> दसतरस<ref>क़ाबू</ref> नहीं जिस पर
उसी का नाम तमन्ना भी है, अगर सोचो।
वो ग़म के जिसके लिए लब पे है दुआ-ए-निजात
वो ज़िन्दगी का असासा<ref>दौलत</ref> भी है, अगर सोचो।
ये धूप दिल की तहों तक जो राह पा जाए
ये चाँदनी भी है साया भी है, अगर सोचो।
जुड़े हैं सब कहीं एक-दूसरे के साथ यहाँ
जो सबका ग़म है वह अपना भी है अगर सोचो।
शब्दार्थ
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