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ये रात कैसी आई / मनविंदर भिम्बर
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ये रात कैसी आई
खाली हाथ
न कोई ख़्वाब
न ख़याल
पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चाँद आज ग़ायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं
थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने
किसके इंतज़ार में