भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये रोज़ कोई पूछता है मेरे कान में / उदयप्रताप सिंह
Kavita Kosh से
ये रोज़ कोई पूछता है मेरे कान में
हिन्दोस्तान है कहाँ हिन्दोस्तान में
इन बादलों की आँख में पानी नहीं रहा
तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में
प्रतिबिम्ब के लिए भी कोई बिम्ब चाहिए
ये आइने अभिशाप हैं सूने मकान में
जनतन्त्र में जोंकों की कोई आस्था नहीं
क्या फ़ायदा संशोधनों से संविधान में
मानो न मानो तुम 'उदय' लक्षण सुबह के हैं
चमकीला तारा कोई नहीं आसमान में