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ये रोशनी तो यहाँ जुगनुओं से आती है / कैलाश झा 'किंकर'

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ये रोशनी तो यहाँ जुगनुओं से आती है।
सधे सुरों की खनक वादियों से आती है॥

कुमार घर में कई चाहतों के बेटे हैं
बहू घरों में फ़कत शादियों से आती है।

ज़ुब़ां से कुछ न कहा है मगर बयाँ सबकुछ
हक़ीक़तों की झलक आँसुओं से आती है।

जहाँ रहेंगे ख़ुशी की तलाश कर लेंगे
समय की सीख तो संन्यासियों से आती है।

निगाह पड़ते ही हलचल हुई थी सीने में
मुहब्बतों की ख़ुशी खिड़कियों से आती है।

कभी महीन-सी आवाज़ भी नहीं आती
ख़बर दिलों की तो खामोशियों से आती है।