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ये लड़कियाँ भी ना / गीता शर्मा बित्थारिया

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ऐ लड़की
ओ लड़की
ये लड़की
वो लड़की
ऐसी लड़की
वैसी लड़की
गोरी लड़की
काली लड़की
इसकी लड़की
उसकी लड़की
पहचान बनी
बस उसकी देह
जब से जन्मी लड़की

कम बोल
धीरे हंस
ढंग से चल
ये कैसे वस्त्र
मुंह ढक
उड़ मत
पंख काट
यहां नहीं
वहां क्यों
कैसे अधिकार
दायरे में रह
मत लांघ तय रेखाएं
बराबरी मत कर
लड़की है पीछे रह
यूं हुआ परिभाषित
उसका चाल चलन

मर्यादा में जी
नीति नियम पाल
परिसीमन होगा तेरी सीमाओं का
ऐसा ही था
और आगे भी ऐसा ही होगा
ग्रंथों में लिखा है
तू समाज को बदलने की कोशिश मत कर
फिर घर परिवार समाज ने
सामूहिक सहमति से पूरे विधि विधान से किया
उसका मर्यादीकरण संस्कार

फिर उसने सूरज से पहले
उषा को जाना
 थोड़ा सा
स्वातंत्र चखा
आदि शक्ति की वंशजा हूं
कह कर स्वयं को पहचाना
देह की सीमाएं लांघ
विदेही बनी
ये लड़की
वो लड़की
इसकी लड़की
उसकी लड़की
ऐसी लड़की
वैसी लड़की
यहां से वहां पहुंच गई
जोर से बोली
ऐ अनुचित प्रतिबंध
ओ अनलिखे अनुबंध
ये कैसा बेढंग चलन
फिर उसकी आवाज़ से
आरंभ हुआ परिशोधन

बहुत हुआ है
पर अब और नहीं
समाजिक मर्यादाओं का भी
अब होगा सीमांकन
लड़की जानी जाएगी
अपने नाम से
उड़ान भरेगी
अपने पंखों से
प्रकृति है वो
स्वयं रचेगी अपना जीवन
जब जन्मी है बराबर
तो क्यों बनी रहे कमतर
नहीं डरेगी स्वयं करेगी
अपने अधिकारों की रक्षा
बदलेगी वो
सामूहिक नियति को प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा


घर परिवार समाज सब देख रहे हैं
एक युग परिवर्तन
जब हंस कर बोली
हर लड़की
जननी है वो मानवता की
मानवीय करण तो वो करके रहेगी
घर, समाज, देश में समानता तो वो ला कर रहेगी
अपने प्यार के रंग में संसार को रंग कर रहेगी