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ये लाए हैं उस गली में जा कर / मेला राम 'वफ़ा'
Kavita Kosh से
ये लाए हैं उस गली में जा कर
हम आय हैं खून में नहा कर
वो दिल भी चुरा के ले गया है
गुज़रा जो अभी नज़र चुरा कर
तेरा पता उन से कौन पूछे
ख़ुद खो गई जो तुझ को पा कर
इक खेल है बुत-गरे-अज़ल का
ये तोड़ना बुत बना बना कर
ढलने की नहीं शबे-ग़म ऐ दिल
सो जाइये शमए-जां बुझा कर
हो जाएंगे बे-नक़ाब अग्यार
पछताओगे मुझ को आज़मा कर
जाने वाला न वापस आया
रुख़्सत हुए लोग रो रुला कर
जाना है वहीं हमें भी इक दिन
आया न जहां से कोई जा कर
दर आये चमन में किस के वहशी
क्यों हंस पड़े फूल खिल खिला कर
कर लेते हैं अपना ग़म ग़लत हम
ग़म के दर्दीले गीत गा कर
होते नहीं दे दिला के भी अब
होते थे जो काम मिल मिला कर
ये बात है पस्त हिम्मती की
क़िस्मत का गिला न ऐ 'वफ़ा' कर।