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ये वही हैं / एन. सिंह
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					समरसता की रामनामी ओढ़कर 
वे फिर आ गये हैं
अब तुम्हें ही तय करना है कि 
ये मनुवादी समरसता 
कहाँ ले जाएगी तुम्हें ?
गाय की पूँछ पकड़कर 
घर में घुस आए 
कसाई की 
सज़ा तुम्हें ही तय करनी है
पहचानो 
कहीं ये वे ही तो नहीं हैं
जो शम्बूक की हत्या करते और कराते हैं 
मन्दिर के द्वार बन्द करते हैं
अनावृत्त मूर्ति को गंगाजल से धोते हैं
घर और गाँव जलाते हैं 
गाँवों में नंगा घुमाते हैं
नारायणपुर, बेलछी और पिपरा के अपराधी 
कहीं ये ही तो नहीं हैं
भूल की सज़ा 
कभी-कभी बहुत भयानक होती है
गले लगाने की साज़िश को समझो
भूलो मत कि
ये वही हैं।
	
	