भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये शरद की चाँदनी / हेमन्त श्रीमाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शोख चंचल चुलबुली है, ये शरद की चाँदनी

इस कदर मादक नहीं था मरमरी कोमल बदन
उम्र में शामिल हुआ है एक अल्हड़ बाँकपन
रूप में ख़ुद आ घुली है, ये शरद की चाँदनी

स्वप्न बुनती जा रही है जो मिलन के हर जगह
सेज पर फिर बिछ रही है एक चादर की तरह
दूधिया साबुन धुली है, ये शरद की चाँदनी

संगमरमर-सी ऋचा का कामभेदी व्याकरण
और स्वर्णिम ओढ़नी का पारदर्शी आवरण
जान लेने पर तुली है, ये शरद की चाँदनी