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ये शहर कब रुका है सड़कों पर / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
यह शहर कब रुका है सड़कों पर
आदमी भागता है सड़कों पर
पूरी बेरोजगार पीढ़ी की
दौड़-प्रतियोगिता है सड़कों पर
इसलिए घर-मकान निर्जन है
क्योंकि मेला लगा है सड़कों पर
मन में डर है कहीं भी लुटने का
सहमी-सहमी हवा है सड़कों पर
सड़कें सड़कों में हो रही हैं गुम
आदमी लापता है सड़कों पर
इन्द्रधनुषी किशोर सपनों का
आईना टूटता है सड़कों पर
गूँगा आक्रोश बंद कमरों का
कूद कर आ गया है सड़कों पर