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ये शौक क्या कि पहले कोई गम तलाशिए / गणेश गम्भीर
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ये शौक क्या कि पहले कोई गम तलाशिये,
फिर ज़ख्मे दिल के वास्ते मलहम तलाशिये!
फसले तबाह करता है रोना फिजूल का,
रोना है गर तो बढियाँ सा मौसम तलाशिये!
साया भी अपना साथ नहीं देता है सदा,
कैसे कहूँ मैं आपसे हमदम तलाशिये !
इंसानियत का कुम्भ लगे जिसके तट के पास,
रोटी का भूख से वही संगम तलाशिये!
बदलाव के जुलूस से मत दूर भागिए,
आते हुए ज़माने का परचम तलाशिये!
किसके लहू का जोश शहर कि रंगों में है,
आखें हैं आज गाँव कि क्यों नम, तलाशिये!