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ये सच है मैं वहां तनहा बहुत था / अंबर खरबंदा
Kavita Kosh से
ये सच है मैं वहां तनहा बहुत था
मगर परदेश में पैसा बहुत था
वो कहता था बिछुड़ कर जी सकोगे
वो शायद अबके संजीदा बहुत था
बिछड़ते वक्त चुप था वो भी, मैं भी
हमारे हक़ में ये अच्छा बहुत था