भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये सत्तर साला बूढ़े़ / लालित्य ललित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जवां बनने की
कोशिश में
ये सत्तर साला बूढ़े
जींस में कसे तने खड़े हैं
कॉफी हाउस में ना बैठ कर
पी.वी.आर. में लगे हैं
अपने को भुलाने का
अच्छा तरीका है
मॉल में ‘माल’ को देखना
जी भर कर आंखें सेंकना
इन दिनों इस जमाने का
फैशन है
बाबा ! कहां चले ?
आज तो जींस शींस में
छठी कक्षा की
शिल्पा ने पूछा
बेटा !
लाल साहब से मिलना है
शाम तक लौट आऊंगा
शिल्पा हैरान सी
बाबा को देखती है ।