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ये सन्नाटा तो टूटे चाहे जो अंजाम हो जाये / कुमार नयन

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ये सन्नाटा तो टूटे चाहे जो अंजाम हो जाये
कोई नारा लगाओ शहर में कुहराम हो जाये।

कहां कोई दवा कोई दुआ कुछ काम आती है
मिरा ये दर्द मेरी शख्सियत के नाम हो जाये।

मैं अपने अहद का खोया हुआ कोई सितारा हूँ
चमक उटठूंगा जब सारी ज़मीं पर शाम हो जाये।

नहीं शिकवा किसी से कुछ फ़क़त है आरज़ू इतनी
मिरा हर ज़ख़्म दुनिया लिए पैग़ाम हो जाये।

अभी इसको बनाने में मिरी हस्ती को मिटने दो
मुझे तब याद करना जब ये रस्ता आम हो जाये।

करूँ मैं खुदकुशी कैसे कि मजबूरी मिरी समझो
किसी के सर न मेरे क़त्ल का इल्ज़ाम आ जाये।

बड़ी मुद्दत पे मेरे दर्दे-दिल को तो छुआ तुमने
चलो फिर इस बहाने एक दौरे-जाम हो जाये।