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ये सफ़र कितना कठिन है रास्तों को क्या पता / नित्यानन्द तुषार
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ये सफ़र कितना कठिन है रास्तों को क्या पता
कैसे-कैसे हम बचे हैं हादसों को क्या पता
आँधियाँ चलतीं हैं तो फिर सोचतीं कुछ भी नहीं
टूटते हैं पेड़ कितने आँधियाँ को क्या पता
अपनी मर्जी से वो चूमें, अपने मन से छोड़ दें
किस क़दर बेबस हैं गुल ये तितलियों को क्या पता
एक पल में राख कर दें वो किसी का आशियाँ
कैसे घर बनता है यारो बिजलियों को क्या पता
आइने ये सोचते हैं सच कहा करते हैं वो
उनके चेहरे पर हैं चेहरे आइनों को क्या पता
जाने कब देखा था उसको आज तक उसके हैं हम
क़ीमती कितने थे वे पल उन पलों को क्या पता
जैसे वो हैं हम तो ऐसे हो नहीं सकते 'तुषार'
हम उन्हें भी चाहते हैं दुश्मनों को क्या पता