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ये सफ़र मेरा आज़माया है / नवीन जोशी
Kavita Kosh से
ये सफ़र मेरा आज़माया है,
धूप मेरी है मेरा साया है।
भूल जाती हैं मंज़िलें अक्सर,
रास्तों ने मुझे निभाया है।
मैं जहाँ जा के ख़त्म होता हूँ,
ख़ुद को मैंने वहीं पे पाया है।
इतनी मुश्किल से तो गुमाया था,
क्यूँ मुझे फिर से ढूँढ लाया है।
सबसे कहता है वो मैं कैसा हूँ,
सिर्फ़ मुझको नहीं बताया है।
अब मेरा जश्न ख़ुश-नुमा होगा,
मैंने ख़ुद को नहीं बुलाया है।
सारे क़र्ज़े चुका दिए लेकिन,
मेरा मुझ पे अभी बकाया है।
चल मुखौटों के दाम दुगने कर,
आइना ले के कोई आया है।