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ये सब दिन तुम्हारे लिए / नंद चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
ये दिन मैंने तुम्हारे लिए रखे हैं
मूसलाधार वर्षा और उन्मत्त आँधियों के
लगातार भागने के, दो-दो सीढ़ियां उचक-उचककर चढ़ने के
मुझे जहाँ से चढ़ाई शुरू होती है वहीं छोड़ देने के
ये दिन गुस्सा करने के हठीले
लगातार रोने के न बोलने के
सो जाने के ओस नहायी रातों में छत पर
मन ही मन प्रतिज्ञायें करने के
कहीं अदृश्य हो जाने के
बम्बई या कलकत्ता जाने वाली गाड़ियों के
ये दिन हँसने के
बादलों से सूँड हिलाते हाथी, बिना पूँछ वाले घोड़े देखने के
हमीदन चाची के बाग के
चोरी-चोरी अमरूद खाने के
ये सब दिन
अनंत लम्बी और रंग-बिरंगी पतंग के लिए
वृक्षों, पहाड़ों, नक्षत्रों के पार जाने के
ये सब दिन उमंग के
मैंने तुम्हारे लिए इस असंख्य रंगों वाली
मंजूषा में रख दिए हैं।