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ये सारे मज़हबी सियासत के आक़ा / ओम प्रकाश नदीम
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ये सारे मज़हबी सियासत के आक़ा
मोहब्बत के दुश्मन हैं नफ़रत के आक़ा
इन्हें भूल कर भी हुकूमत न देना
अक़ीदत के ताजिर हैं ठगते हैं सबको
ये पा जाएँ मौक़ा तो छोड़ें न रब को
इन्हें भूल कर भी हुकूमत न देना
ये औरत से पढ़ने का हक़ छीन लेंगे
रिवायत से लड़ने का हक़ छीन लेंगे
इन्हें भूल कर भी हुकूमत न देना
ये इंसानियत की ज़बाँ काट देंगे
ये हक़ बात को बोलने भी न देंगे
इन्हें भूल कर भी हुकूमत न देना
लड़ाते हैं मासूम लोगों को अक्सर
कराते हैं ये मुल्क में ख़ून-ख़च्चर
इन्हें भूल कर भी हुकूमत न देना
अगर चाहते हो कि अम्न-ओ-अमाँ हो
कि कुछ और कुछ और बेहतर जहाँ हो
इन्हें भूल कर भी हुकूमत न देना
इन्हें भूल कर भी हुकूमत न देना