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ये सिर्फ़ विदा है / मुकेश मानस

वो पहली मुलाकात में,दिल खोल के मिलना
वो फासला-ए-उम्र, हदें तोड़ के मिलना
हमको लगा जैसे कोई, हमराह आ मिला
ऐसा था हमसे एक बुजुर्गवार का मिलना

वो सोफ़े पे साथ बैठ के, चाय पिया करना
वो साथ-साथ चलते हुए, गप किया करना
कभी हम शुरु करते तो कभी वो शुरु करते
वो यूँ ही बात बात में, बातें किया करना

किसी निराश पल कोई सपना दिया करना
वो उलझनों की उलझनें, सुलझा दिया करना
वो सर्दियों में डाल के पिछ्वाड़े कुर्सियां
जीवन में हंसी धूप को, मतलब दिया करना

हम खुशनसीब निकले, हमें साथ मिला उनका
हम बेतज़ुर्बेकारों को, तजुर्बा मिला उनका
वो हाथ जो लपक के, मिला करते थे हमसे
दौरे-ख़िजां में सर पे, साया मिला उनका

वो पल जो उनके साथ, गुजारा किये हैं हम
वो पल जो उनके साथ, संवारा किये हैं हम
वो पल हमारी जिन्दगी में, बेमिसाल हैं
वो पल जो उनके साथ, गुजारा किये हैं हम

वो शिद्दत भरे ज़ज़बात, हमेशा ही रहेंगे
वो अदबी ख़्यालात, हमेशा ही रहेंगे
अब वो नहीं होंगे, स्टाफ़ रूम में मगर
वो उनके निशानात, हमेशा ही रहेंगे

होंठों से मेरे आज, निकले यही सदा
और कोई हो न हो, पर सच हो ये दुआ
जीवन में उनके रोज ही, आया करे बसंत
उनकी जिन्दगी का फूल, महका रहे सदा

डा. सुरेद्र नाथ तिवारी के लिए
रचनाकाल:2000