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ये सुब्ह का पुर-कैफ़ सुहाना मंज़र / रमेश तन्हा
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ये सुब्ह का पुर-कैफ़ सुहाना मंज़र
ये आंखें झपकते हुए माहो-अख़्तर
पत्तों पे ये शबनम के मोती दाने
फिर उस पे ये दूब का मुलायम बिस्तर।