भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये सुब्ह का पुर-कैफ़ सुहाना मंज़र / रमेश तन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
ये सुब्ह का पुर-कैफ़ सुहाना मंज़र
ये आंखें झपकते हुए माहो-अख़्तर
पत्तों पे ये शबनम के मोती दाने
फिर उस पे ये दूब का मुलायम बिस्तर।