Last modified on 7 सितम्बर 2020, at 11:10

ये सुब्ह का पुर-कैफ़ सुहाना मंज़र / रमेश तन्हा

 
ये सुब्ह का पुर-कैफ़ सुहाना मंज़र
ये आंखें झपकते हुए माहो-अख़्तर
पत्तों पे ये शबनम के मोती दाने
फिर उस पे ये दूब का मुलायम बिस्तर।