ये सृष्टि अमृतमय है / मधुसूदन राव / दिनेश कुमार माली
रचनाकार: मधुसूदन राव (1853-1912) “भक्त-कवि”
जन्मस्थान: पुरी
कविता संग्रह: कवितावली प्रथम भाग (1876), छंदमाला प्रथम भाग (1881), कवितावली द्वितीय भाग(1884), संगीतमाला(1896), छंदमाला द्वितीय भाग(1898) बसंतगाथा(1902), उत्कलगाथा(1903), कुसुमांजली(1903), हिमाचले उदय उत्सव(1911)
मधुमय सृष्टि सुधामय सृष्टि
यह सृष्टि अमृतमय.....हे
जागो नरनारी, अमृत/संतति
पीओ हरदम अमृतपेय... हे
पीकर यह अमृत रात/दिन
गाओ अमृत की जय...हे
महान अंतर उदार आकाश
तेज/ तेज में तेजोमय...हे
यह वरेण्य भर्ग मंदाकिनी धारा
नाश का मरण भय.... हे
यह तिमिर हर गगन ज्योति
पीकर होओं पुण्याशय...हे
अकूल अतल महापारावर
नाद/ नाद में नादमय... हे
अवनी लक्ष्मी से प्रसवित सिंधु
निबिड़ नीलीमालय... हे
तरल तरंगित नाद/सुधा
पीओ वही ताललय....हे
गगन चुंबी महामहीधर
हिमहिम में हिमालय.... हे
धरा/रानी/वेणी असंख्य गिरि श्रेणी
निर्झर मुक्तामय...हे
इस शिला लीला की घनीभूत सुधा
पीने से पापक्षय...हे
दिगंत बिहारी वायु सदागति
श्वास श्वास में श्वासमय .. हे
पवन स्पर्श या प्रलय/तांडव
सदा चंचलमय....हे
वह मधुरस्पर्श, वह प्रचंड/तांडव
अमृत का अभिनय...हे
मरीचिकामय तरु शून्यमरु
घोर तृषा रंगालय...हे
दिंगत विस्तृत ज्वलंत/प्रांत में
पथशून्य निराश्रय हे
वह मरु अंतर से बहता सुधा/स्त्रोत
पीओ यही सुधापेय...हे
कोमल श्यामल तृण/शस्य /क्षेत्र
वन तरु लतामय...हे
वर्ण विचित्रित शब्द मुखरित
सुगंध पूरित हृदय ...हे
डाल/ डाल पर मधुरस धारा
फल पुष्प किसलय...हे
नित प्रवाहित नदी निर्झर
स्वच्छ सरोवरमय...हे
समीर स्पर्श में कलकल नाद
रम्य वीचीमालामय...हे
वक्ष में प्रतिबिम्वित सूर्य चंद्र तारें
देखो कितना विस्मय ...हे
भूलोक द्यूलोक अंतरिक्षलोक
प्रकृति का नाटयालय ..हे
स्थावर जंगम पशुविहंगम
कीट पतंगमय...हे
रहस्यपूर्ण यह असीम विश्व
अमृत में अमृतमय हे
पूर्वाशा के द्वार पर उतरती उषा रानी
सुबह का सूर्योदय हे
आलोक विलासी उज्जवल दिवस
कर्म जागरणमय...हे
तपस्विनी या ज्योत्स्नामयी रात्रि
विश्राम से सुखमय...हे
बसंत निदाघवर्षा शरद
हिमशीत ऋतुमय...हे
प्रशांत गंभीर मधुर रुचिर
दिव्यसुधा स्वादमय...हे
घर परिवार मानव समाज
नर/नारी लोकालय...हे
पितामाता भाई भगिनीं दम्पति
जाया या तनया ...हे
गुरुजन बंधु या अंतवासी
आत्मीय जनों का परिचय...हे
दया निकेतन धर्माधिकरण
विद्यालय देवालय...हे
श्रद्धाभक्ति प्रीति दया शुभाकांक्षा
पुण्य विश्वास विनय...हे
इन सब में निवास करते विभु
शाश्वत अमृतमय...हे
गरल से अमृत करते बाहर
अनंत अमृतालय... हे
परम जनक परम जननी
उसके पाँवों में अभयवर... हे
वही अभयवर आनंद अमृत
होओ शिशु स्तनंधय.... हे