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ये हक़ीक़त है मगर फिर भी यकीं आता नहीं / शहरयार
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ये हक़ीक़त है मगर फिर भी यकीं आता नहीं
दिल मेरा अब भी धड़कता है पे घबराता नहीं
रूह के बारे-गरां पर नाज़ करते हैं सभी
बोझ अपने जिस्म का कोई उठा पाता नहीं
सुर्ख़ फूलों से ज़मीं को ढक गई किसकी सदा
सबकी आंखें पूछती हैं, कोई बतलाता नहीं
कुर्ब का शफ्फाक आइना मेरा हमराज़ है
दूरियों की धुंध से आंखों का कुछ नाता नहीं
नींद की शबनम से मैं भी तर, मेरा साया भी तर
आसुंओं का सैल मेरी सम्त अब आता नहीं।