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ये ही लँड़ भँइसुरा के, लामा लामा टाँग रे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ये ही लँड़ भँइसुरा<ref>भसुर, जेठ के लिए गाली</ref> के, लामा लामा<ref>लम्बे-लम्बे</ref> टाँग<ref>जाँघ से नीचे तक का पैर</ref> रे।
ये ही टाँगे लँघलक<ref>लाँघ गया</ref> मँड़वा<ref>मण्डप</ref> हमार रे॥1॥
ये ही लँड़ भँइसुरा के, बड़के बड़के<ref>बड़ी-बड़ी</ref> आँख रे।
ये ही आँखे देखलक<ref>देखा</ref> गउरी<ref>गौरी, कन्या</ref> हमार रे॥2॥
ये ही लँड़ भँइसुरा के, बड़के बड़के हाँथ रे।
ये ही हाँथे छुअलक<ref>छुआ, स्पर्श</ref> गउरी हमार रे॥3॥
ये ही लँड़ भँइसुरा के, बड़के बड़के दाँत रे।
से ही दाँते हँसलक<ref>हँसा</ref> मड़वा हमार रे॥4॥

शब्दार्थ
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