भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यों तो अनजान लगता रहे / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
यों तो अनजान लगता रहे
प्यार भी दिल में जगता रहे
कैसा दुश्मन कि सर काट ले
और प्यारा भी लगता रहे!
हम तो मरते हैं इस झूठ पर
उम्र भर कोई ठगता रहे
ख़ून का ही हमारे क़सूर
हाथ क्यों उनके रँगता रहे
कोई आयेगा तड़के गुलाब!
दिल से कह दो कि जगता रहे