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यों तो बेइमान ही अक्सर देखे हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
यों तो बेइमान ही अक्सर देखे हैं
इंसां कुछ मन के भी सुन्दर देखे हैं
पलक झपकते ही जो रहजन बन जाते
हम ने कुछ ऐसे भी रहबर देखे हैं
जिनके घर थी भूंजी भाँग नहीं मिलती
हैं हालात हुए कुछ बेहतर देखे हैं
जिनमें है ताकत संसार डुबोने की
सीमाओं में बहते सागर देखे हैं
बड़े प्यार से जिनकी साज सँभाल रखी
गर्दन पर फिरते वह नश्तर देखे हैं
जिन हाथों को चूमा प्यार किया हमने
आज उन्हीं हाथों में पत्थर देखे हैं
जिनकी जग में तूती थी बोला करती
हाथ पसरते उनके घर-घर देखे हैं