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यों निगाहें थीं शरमा गयीं / गुलाब खंडेलवाल
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यों निगाहें थीं शरमा गयीं
मछलियाँ जैसे बल खा गयीं
प्यार में मर भी पाये न हम
याद बातें कई आ गयीं
कुछ तो ऐसी ही थीं सूरतें
जिनपे नज़रें हमेशा गयीं
कोई ऐसे में जाता, भला!
बदलियाँ सामने छा गयीं
गंध कैसे छिपेगी, गुलाब!
ये पँखुरियाँ उन्हें भा गयीं