भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यों मेरे उसके बीच कोई फ़ासिला नहीं / ऋषिपाल धीमान ऋषि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यों मेरे उसके बीच कोई फ़ासिला नहीं
लेकिन कभी भी मुझसे वो खुलकर मिला नहीं।

तन्हाइयों से प्यार मुझे है बहुत, मगर
लोगों के आने जाने से भी कुछ गिला नहीं।

मैं उम्र भर न प्यार का फिर नाम ले सकूँ
देना मुझे तू प्यार का ऐसा सिला नहीं।

जिनकी शरारतों से बनी ज़िन्दगी अज़ाब
वे कह रहे हैं गुल अभी असली खिला नहीं।

मेरे विरोधियों में मेरे अपने लोग हैं
लेकिन मुझे किसी से 'ऋषि' कुछ गिला नहीं।