चौपाई:-
वैठु कुंअर वट शीतल छांहा। पंखी गवनी सुन्दरि जांहा॥
महल गई जंह कुंअरि वसेरा। दोउ मुख वदन परस्पर हेरा॥
देखा कुंअरि पंखि हित आयउ। धाय धपकि ले हृदय लगायउ॥
गहि मैना धनि कहो सुभाऊ। जानो कृपण परो धन पाऊ॥
वहुत प्रेम पूछी कुशलाता। मैना वोलु मधुर मुख वाता॥
विश्राम:-
मेहि कुशल सहजहिं भये, जब देख्यो तुम पाव।
परम कुशल तुम चाहिये, आनंद सुख चाव॥137॥