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योगी का भोज में जाना / प्रेम प्रगास / धरनीदास

चौपाई:-

मैना सुनि गो कुंअर के पासा। कंुअरि वचन कीन्हो परकासा॥
कुंअर कहा हमके कस साजू। गहि वैराग तजो निज राजू॥
सहज स्वभावहिं चले कुमारा। सुमिरि नाम जप सिरजनहारा॥
चन्द्र खण्ड सम चमकत भाला। नेत्र युगल निसरत दुतिजाला॥
राजा द्वार निशान वजाई। सुनत सकल जन तंह चलि आई॥

विश्राम:-

सब मिलि चरण खटारेऊ, वैठे आसन मारि।
तंह पहुंची परमारथी, जंहवा राजकुमार॥166॥