भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

योगोद्धार / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिल जाने का ठीक ठिकाना अब तो जाना रे।
बैठ गया विज्ञान-कोष पै, गुरु-गौरव का थाना,
प्रेम-पन्थ में भेड़चाल से, पड़ा न मेल मिलाना,
बदला बानारे, अब तो जानारे ।।1।।
मतवालों की भाँति न भावे, वाद-विवाद बढ़ाना,
समता ने सारे अपनाये, किस को कहूँ बिराना,
कुनवा मानारे, अब तो जानारे ।।2।।
देख अखण्ड एक मै नाना, दृश्य महा सुखमाना,
बाजें साथ अनाहत बाजे, थिरके मन मस्ताना,
महिमा गानारे, अब तो जानारे ।।3।।
विद्याधर वेद ने जिस को, ब्रह्म विशुद्ध बखाना,
भागी भूल आज उस प्यारे, ‘शंकर’ को पहचाना,
मिलना ठानारे, अब तो जानारे ।।4।।