(राग खट-ताल मूल)
‘योग-विभूति-सिद्धि’, अति दुर्लभ, सहज नहीं हो सकतीं प्राप्त।
पर इनसे न ‘मुक्ति’ मिल सकती, कहते सिद्ध अनुभवी आप्त॥
है अवश्य ही बड़ा विलक्षण यह मुनियोंका योग-महत्व।
जान सके वे इसके द्वारा ईश-सृष्टि का सारा तत्व॥
इसे छोड़, फिर हुए अग्रसर चिन्मय ‘परम-धाम’ की ओर।
मिले परम प्रभुमें वे जाकर, हुए ‘नित्य आनन्द-विभोर’॥
यही चरम फल श्रेष्ठ योगका, यही योगियोंका नित साध्य।
इसीलिये करते साधन वे, मान एक प्रभुको आराध्य॥
वही ‘युक्ततम’ जो भजते हैं अन्तरात्मासे भगवान।
नित्य-निरन्तर हो अनन्य जो, रह प्रभुके प्रति श्रद्धावान॥