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यो भारत खो दिया फर्क नै इसमैं कोए कोए माणस बाकी सै / लखमीचंद

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यो भारत खो दिया फर्क नै इसमैं कोए कोए माणस बाकी सै

घणे मित्र तै दगा कुमाल्यें, चीज ल्हुकमां प्यारे की ठाल्यें
बेटी बेच-बेच धन खाल्यें, मुश्किल रीत बरतणी न्या की सै

नहीं कुकर्म करणे तै डरते, दिन-रात नीत बदी पै धरते
शर्म ना बुआ बाहण की करते, या मेरी ताई दादी काकी सै

बन्दे जो अकलबन्द होंगे चातर, नहीं मारैंगे ईंट कै पात्थर
सोच ले मनुष दळण की खातर, सिर पै काल बली की चाकी सै

गुरू मानसिंह शुद्ध छन्द छाप तै, ‘लखमीचन्द’ रहो जिगर साफ तै
कळु का कुण्डा भरैगा पाप ते, ब्यास नै महाभारत मैं लिख राखी सै