रँगीन काँच के / कंस्तांतिन कवाफ़ी / सुरेश सलिल
मैं बहुत अभिभूत हूँ जॉन कान्ताकुज़िनोस और,
आन्द्रोनिकोस असान की बेटी, इरिनी की
व्लाखरनाई में हुई ताजपोशी के ब्योरे से ।
चूँकि उनके पास गिने-चुने जवाहरात ही थे
[हमारा दुखी साम्राज्य बेहद ग़रीब था?
उन्होंने नक़ली जवाहरात पहने :
सुर्ख़ सब्ज़ या नीले काँच के अनगिनत टुकड़े ।
मुझे तो कुछ भी अपमानजनक-अशोभनीय नहीं लगा
रँगीन काँच के उन नन्हें टुकड़ों में,
इसके उलट, मुझे वे उदास प्रतिवाद प्रतीत हुए
ताजपोशी के वक़्त उस जोड़े के अन्यायी दुर्भाग्य का,
जिन चीजों के वे हक़दार थे उनके संकेत
कि पक्के तौर पर औचित्य था
किसी जॉन कान्ताकुज़िनोस, किसी श्रीमन्तिनी इरिनी
आन्द्रोनिकोस असान की बेटी
की ताजपोशी पर इनकी सुलभता की गारण्टी का।
[1925]
समय 14 वीं सदी ईस्वी का मध्यकाल। बिजान्तीनी सम्राट आन्द्रोनिकोस पलायोलोगोस के निधन [1341 ई०] के बाद शाही परिवार में कई सालों तक अदालती विवाद चला, जिसमें शाही खजाना एकदम ख़ाली हो गया था। कान्ताकुज़िनोस और इरिनी की ताजपोशी 1347 ई० में हुई।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल