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रँगे रँगे फुलवा के, सेजिया बिछौना हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रँगे रँगे फुलवा के, सेजिया बिछौना हे।
रतन जतन के सिंगार हे, वंदे बाँस के कोहबर॥1॥
ताहि पैसी सूतै गेला, सीरी बर दुलहा हे।
जौरे<ref>साथ में</ref> सीता दाइ हे, बंदे बाँस के कोहबर॥2॥
तेल फूलेल ले, मुँह कान उरेहल<ref>बनाया; शृंगार किया</ref> हे।
चनन छिलकल<ref>छिड़का हुआ</ref> रामेचंदर सेज हे, बंदे बाँस कय कोहबर॥3॥
अलग सूतू बगल सूतू, रानी सीता दाइ हे।
तोरे घाम<ref>पसीने से</ref> चदरिया मैला होय हे, बंदे बाँस कय कोहबर॥4॥
एतन बचन जबे सुनलनि, रानी सीता दाइ हे।
सेज छोड़िय भुइयाँ<ref>जमीन पर</ref> लोटै हे, बंदे बाँस कय कोहबर॥5॥
अलग सूतू बगल सूतू, रानी सीता दाइ हे।
कहू न कहू रानी कुसल रे, बंदे बाँस कय कोहबर॥6॥
राजा दसरथ ऐसो, ससुर पायलौं<ref>पाया</ref> हे।
कोसिला ऐसो सासु पायलौं रे, बंदे बाँस कय कोहबर॥7॥
लछुमन ऐसो हमें, देबर जे पबिलौं हे।
उरमिला एसो गोतनी पाबिलौं रे, बंदे बाँस कय कोहबर॥8॥
रामचंदर ऐसो हमें, पति जे पाबिलौं हे।
अजोधा ऐसो राज पायलौं रे, बंदे बाँस कय कोहबर॥9॥

शब्दार्थ
<references/>