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रंगों का अभिज्ञान / आशुतोष दुबे
Kavita Kosh से
रंगों के संगीत पर सिर हिलाते हुए
आपने उन्हें सहसा मौन होते हुए देखा है?
वे कभी-कभी सहम कर चुप भी हो जाते हैं
और सफेद पड़ जाते हैं डर से
या स्याह हो जाते हैं
आप जब उनका उत्सव मना रहे होते हैं
वे सुबक रहे होते हैं धीरे-धीरे
काँप रहे होते हैं आशंकाओं मे
वे अपने विसर्जन को जान रहे होते हैं