भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंगों का मौसम / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
रंग-बिरंगी होली आई,
बच्चों की मुँहबोली आई।
धूम-धड़ाका, निकली टोली
चिल्लाते सब, होली, होली!
देखो कोई बच ना पाए,
सारी धरती ही रँग जाए।
छुप बैठे तुम घर के अंदर,
आओ तुम्हें बना दें बंदर!
लाना थोड़ा और गुलाल,
वाह, वाह, क्या हुआ कमाल!
शक्ल बनी है लाल टमाटर,
सिर पर टोपी ग्रेट सिकंदर!
सतरंगी टोली यह निकली,
जैसे रंग-बिरंगी तितली।
अंबर तक उछली किलकारी,
मुसकाती है धरती सारी।
बार-बार आए यह मौसम,
मन के रंगों में भीगें हम!