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रंग, रस, लय / कन्हैया लाल सेठिया

तू कोरणै सकै
भाटां परां
ळीकां स्यूं चितराम
पण कोनी हुवै बै
रंगां बिनां जींवता !
तू कर सकै भेळी
सबदां री भीड
पण बिन्यां हुयां
मांयनै दीठ
कोनी बणै कविता,
तू जोड़ सकै तुक
पण बिन्यां हुयां
हियै में संगीत
कोनी रच सकै गीत गमता !