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रंग-गंध के गाँव में / अवनीश सिंह चौहान
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यह भँवरा मँडराता-फिरता
रंग-गंध के गाँव में
फूलों का मन भरमाने को
मीठे असमय गीत सुनाता
उनको झूठी प्रीत दिखाकर
मादक मधु-मकरंद चुराता
अपना काम बनाता रहता
जज्बातों की छाँव में
कहने को कोमल कलियों पर
जाने कितना प्यार लुटाता
लोक-लाज सब छोड़-छाड़ के
मंजरियों को खूब रिझाता
सबको सैर कराता रहता
है कागज की नाव में
जो जितना आवारा रहता
बनकर के बंजारा रहता
गली-गली में उसकी चर्चा
आसमान का तारा रहता
नये समय की चालें चलता
बाँधे घुँघरू पाँव में