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रंग-बिरंगा लगे जैसे बाज़ार-सा / बल्ली सिंह चीमा
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रंग-बिरंगा लगे जैसे बाज़ार-सा ।
उसका चेहरा है रंगीन अख़बार-सा ।
उसका चेहरा लगे जैसे स्वागत का गेट,
पर मिलेगा यूँ जैसे हो दीवार-सा ।
जैसे धंगना दिया हो किसी ने उसे,
यूँ चले है, हो जैसे गिरफ़्तार-सा ।
कौन किसको पढ़े, बैठे हैं पास-पास,
तू भी अख़बार-सा, मैं भी अख़बार-सा ।
देख 'बल्ली' ये जश्ने-आज़ादी का दिन,
सूखे खेतों की मानिन्द है बीमार-सा ।