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रंग-सुगन्ध / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
उतना ही चाहिए रंग
रंग जाऊँ
कविता के संग
सुगन्ध उतनी ही कि
कविता महके
और व्याप जाए धरती जितनी
चिड़िया भर शब्द
चहकते रहें
उम्र भर।