भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रंग-4 / जया जादवानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग बहते हैं तो
उसके हाथ ले लेते हैं पत्तियों का आकार
रंग बहते हैं तो
उसका चेहरा फूल हो जाता है
रंग बहते हैं तो
देह उसकी हो जाती है सरोवर
रंग बहते हैं तो
तीसरी डुबकी लेती हूँ मैं
अंतर्धान हो जाती हूँ।